लेखनी प्रतियोगिता -29-Feb-2024
नींद गया चैन गया
गया आंख का सपना है
जिसके लिए दिन रात खोए
वह दिखाई अब आइना है।।
उसे कोई मिल गई
ठोकरों में मेरा दुनिया है
सपना-सपना के चक्कर में
दुनिया लगता ना किसी का अपना है।।
हर कोई बेहतर का तलाश करता
बेहतर का बस रोना है
पुराने दिन के बेहतरीन क्षण को
याद ना किसी को रखना है।।
हंसु या रोंऊ समझ ना आता है
हंसने वाला अपना है
हर बात पर नाम पुकार कर उसकी
होता कुरंदन मेरा आत्मा है।।
चिढ़ाने वाला भालू समझ बैठा है
हर बात पर नाम उसका रखना है
यार अब और कितना तड़पाओगे
यह दिल का घर मेरा लगता अब सुना-सुना है
घोर कलयुग में विश्वास करूं किस पर
विश्वास के काबिल किसको माना है
सब है अपने उल्लू सीधा करने में
यहां कौन अपना है।।
संदीप कुमार अररिया बिहार
Varsha_Upadhyay
02-Mar-2024 07:39 PM
Nice
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Mohammed urooj khan
02-Mar-2024 11:45 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
01-Mar-2024 11:24 PM
बहुत खूब
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